अछरू माता का दरबार : सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करती हैं अछरू माता

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अछरू माता का दरबार

निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर के पास मडिय़ा ग्राम से 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित अछरू माता का विशाल एवं प्रसिद्ध मंदिर है, अछरू माता का यह मंदिर बहुत चर्चित है। मंदिर के अंदर एक कुंड है, जो सदैव जल से भरा रहता है। प्रतिवर्ष नवरात्रि के अवसर पर यहां ग्राम पंचायत की देखरेख भव्‍य मेला लगता है। मेला में दूर-दूर से हजारों की संख्या श्रद्धालु अपनी-अपनी मनोकामना लेकर यहां आते हैं और माता का आशीर्वाद लेकर जाते हैं, माना जाता है यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है । मंदिर में एक जल कुंड है माना जाता है कि इस कुंड से माता अपने भक्तों को प्रसाद के रूप में कुछ न कुछ देती है। जिस भक्त को माता रानी के द्वारा (कुंड के माध्यम से) कुछ ना कुछ फल दिया जाता है उस का कार्य पूरा होता है। यहां मूर्ति नहीं है, एक कुंड के आकार का गड्ढा है, कुंड में जल हमेशा भरा रहता है।

माता के चमत्कारों की कहानियां क्षेत्र के हजारों बुर्जुर्गों की जुबान पर आज भी सुनने के लिए मिलती हैं।

अछरू माता मंदिर का इतिहास यादव समाज के गौ-सेवक अछरू से जुड़ा हुआ है, जिन्हें माता रानी ने अपने दर्शन दिए, गौ-सेवक अछरू को माता ने दर्शन देने के साथ-साथ आज माता को अछरू माता के नाम से जाना जाता है।

गांव के बुजुर्गों का कहना है कि लगभग 500 वर्ष पुरानी बात है, अछरू नाम का एक यादव गौ-सेवक था, जिसकी कुछ भैंस गुम हो गईं थीं,  भैंसों को ढूंढते-ढूंढ़ते लगभग एक महीना व्‍यतीत हो जाने पर वह थक कर एक जगह बैठ गया। प्यास से गौ-सेवक के प्राण निकले जा रहे थे तभी देवी मां ने उन्हें एक कुंड में से निकल कर दर्शन दिए औऱ कहा कि इस कुंड में से पानी पी लो। इसके साथ ही माता ने गौ-सेवक को उसकी भैंसों का पता भी बताया । अछरू नाम के गौ-सेवक ने कुंड में से पानी पिया और कुंड की गहराई पता करने के लिए उन्होंने अपनी लाठी कुंड में डाली तो वो लाठी नीचे तक चली गई, तो वह अचम्भित रह गया फिर वो माता के बताए स्थान पर गया तो उन्हें सभी भैंसे मिल गयीं और उसकी लाठी भी उसी तालाब में मिली यह देख अछरू यादव नाम का किसान अचम्भित रह गया और उसने यह सब बात सभी ग्रामीणों को तो बताई। धीरे धीरे लोग इस स्थान पर आने लगे और लोगो की मनोकामनाएं पूर्ण होने लगीं । देश के हर राज्य से लोग आने लगे और भक्तों ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा दिया और उस समय से आज तक मंदिर की पूरी देख रेख और पूजा पाठ यादव जाती के बंधु ही करते हैं।

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