दीपावली : प्रकाश का त्यौहार

दीपावली : पर्वों का समूह

दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्‍यौहार होता है। धनतेरस के दिन बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नर्क चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। बाज़ारों में बताशे, मिठाइयाँ, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें लगती हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बचाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। उसके अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन भाई और बहिन गांठ जोड़ कर यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई उसे भेंट देता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये भी इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व हर्षोल्‍लास से मनाते हैं।

छोटी दीवाली : रूप चतुर्दशी, नर्क चतुर्दशी का महत्त्व

दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दीपावली दीपों का त्योहार है, साथ ही यह ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को दर्शाता है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो प्रतिवर्ष कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में होता है।
भारतवर्ष में सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से दीपावली का त्‍यौहार सभी त्‍यौहारों में से अत्यधिक महत्त्व रखता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजकुमार श्री राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। श्री राम के आगमन पर स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्षोल्‍लास से मनाते हैं। अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार दीपावली को 12 वर्षों के वनवास एवं 1 वर्ष के अज्ञातवास के पश्‍चात पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। इसके अतिरिक्‍त कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन के दौरान उत्‍पन्‍न हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। लक्ष्मी जी के साथ-साथ गणेश, संगीत व साहित्य की देवी सरस्वती और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित कर पूजा करते हैं। कुछ लोग दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ लोक में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी जी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वो भविष्‍य में मानसिक और शारीरिक दुखों से दूर रहते हैं।
भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की असत्‍य पर सदा ही जीत होती है । दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व से ही दीपावली की तैयारियाँ प्रारंभ कर दी जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य करते हैं। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।

जाने क्या है रूप चतुर्दशी या काली चतुर्दशी ?

दीपावली का महत्त्व

दीपावली नेपाल और भारत का एक महत्‍वपूर्ण त्‍यौहार है। नेपाल में यह त्यौहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। दीपावली नेपाल और भारत में बहुत खरीददारी होती है, इस दौरान लोग कारें और सोने के गहने आदि महंगी वस्तुएँ तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार आदि खरीदते हैं। दीपावली में लोग उपहार स्वरुप आम तौर पर मिठाइयाँ व सूखे मेवे एक दूसरे को देकर बधाई भी देते हैं। इस दौरान लड़कियाँ और महिलाएँ दरवाजे के पास और रास्तों पर रंगोली और अन्य रचनात्मक आकृती बनाती हैं। युवा और वयस्क आतिशबाजी और प्रकाश व्यवस्था में एक दूसरे की सहायता करते हैं।

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