The first lady teacher in india भारत में पहली महिला शिक्षक: सावित्रीबाई फुले Savitribai Phule

भारत में पहली महिला शिक्षक
Savitribai Phule

first lady teacher in india भारत में पहली महिला शिक्षक

आज देश की पहली महिला शिक्षका, समाज सुधारिका एवं कवियत्री  सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले की जयन्ती है, सावित्रीबाई फुले Savitribai phule का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता खन्दोजी नैवेसे और माता लक्ष्मी थीं। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। पति ज्योतिराव गोविन्द राव फुले के साथ मिलकर वे स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने बालिकाओं को शिक्षा से  जोड़ने की सन 1852 में एक विद्यालय की स्थापना की।

उल्लेखनीय कार्य

सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल होने के साथ साथ पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं।

महात्मा ज्योतिबा महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे। वे महिलाओं और दलित जाति के लोगो को शिक्षित करने के प्रयासों मे लगे रहे। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे।

सावित्रीबाई ने अपने जीवन को समाज सुधार के लिए ही समर्पित कर दिया था, विधवा विवाह, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना ही उनका उद्देश्य रहा। उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

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सामाजिक विरोध का सामना

वे जब स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग पत्थर मारते थे। उन पर गोबर व गंदगी फेंक देते थे।  जिस कारण वे अपने साथ एक साड़ी अतिरिक्त रख कर स्कूल जाती थी। स्कूल पहुँँच कर गन्दी साड़ी बदलने के बाद पुन: अपने उद्देश्य की पूर्ति में लग जाती थी। अपने उद्देश्य पूर्ति के लिए सवित्रीबाई फुले सभी की प्रेरणा स्त्रोत है।

विद्यालय की स्थापना

महिलाओ की शिक्षा के लिए उन्होने अपने पति के साथ मिलकर 3 जनवरी 1848 को पुणे मे महिलाओ के लिये एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष के अंदर सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय की स्थापना करने में सफल रहे। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। उस समय महिला विद्यालय चलाना काफी मुस्किल था। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों को शिक्षित करने का दायित्व निभाया।

निधन

प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। प्लेग से प्रभावित एक बच्चे की सेवा करते करते वे भी  इस महामारी का शिकार हो गयी और इसी  कारण दिनांक 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया। 

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