Table of Contents

बिरसा मुंडा का संक्षिप्त विवरण
नाम (Name) | बिरसा मुंडा |
जन्म (Date of Birth) | 15-11-1875 |
जन्म स्थान | उलीहातू खूंटी (झारखण्ड) |
पिता का नाम | सुगना मुंडा |
माता का नाम | कर्मी हाटू मुंडा |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
मृत्यु | 09-06-1900 |
मृत्यु का कारण | हैजा |
आदिवासियों के महानायक और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के मन में अपने विद्यार्थी जीवन से ही ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया था।। मात्र 19 वर्ष की अल्पायु में ही बिरसा मुंडा ने अपने क्षेत्र बिहार में अंग्रजों के खिलाफ संघर्ष प्रारंभ कर दिया था। तत्समय में आदिवासियों को शिक्षित करने के लिए अंग्रेजों से लडाई लडते रहे। ब्रिटिश हुकूमत ने बिरसा मुंडा को अपने लिए खतरा मानते हुए 3 मार्च 1900 को बिरसा की आदिवासी छापामार सेना के साथ मकोपाई वन (चक्रधरपुर) में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। कैद में रहते हुए 9 जून 1900 को रांची जेल में 25 वर्ष की अल्पायु में उनकी मृत्यु हो गई। ब्रिटिश सरकार ने उनकी मृत्यु का कारण हैजा बताया, किन्तु ब्रिटिश सरकार द्वारा बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखाया गया। दूसरी ओर यह भी माना जाता है कि जेल में बिरसा मुंडा को धीमा जहर दिया था। जिस कारण उनकी मृत्यु हुई। आदिवासियों के महानायक और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी की 9 जून को हुई शहादत को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यहां पढ़ें – How to change photo in Aadhar Card
यहाँ पढ़े : डॉ सलीम अली की जीवनी और उनसे जुड़े रोचक तथ्य
यहाँ पढ़े – क्या है प्रधानमंत्री ई-विद्या योजना?
यहाँ पढ़े – मेटावर्स क्या है? यह कैसे काम करता है और इसमें पैसे कमाने के क्या चांस हैं?FacebookTwitter
Important Work of Birsa Munda बिरसा मुंडा के प्रमुख कार्य
बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश हुकुमत के एजेंडे को सबके सामने लाने के लिए जागरूकता फैलाना शुरू किया तथा आदिवासियों की एक सेना बनाया। बिरसा मुंडा की सेना ने ब्रिटिश हुकुमत के अन्याय और विश्वासघात के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया तथा कई आंदोलन किये। बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में एक सक्रिय भागीदार थे। बिरसा मुंडा को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों पर अत्यधिक प्रभाव डाला, वे अपने साथियों और अनुयायियों को ईश्वर की अवधारणा क पालन करने को कहा। बिरसा मुंडा एक प्रभावशाली व्यक्ति थे तथा वे अपने उत्साह वर्धक व प्रभावशाली भाषण से जनता प्रोत्साहित किया।
यह भी पढ़े – कोनसे है भारतीय बाजार में उपलब्ध बजट 5G स्मार्टफोन
Birsa Munda Early Life बिरसा मुंडा का प्रारंभिक जीवन
बिरसा मुंडा का जन्म पिता सुगना मुंडा और माता कर्मी हाटू के घर दिनॉक 15 नवंबर, 1875 को हुआ। बिरसा मुंडा के पिता सुगना अपने गृह ग्राम उलीहातू, खूंटी, झारखंड में एक खेतिहर मजदूर थे। वे परिवार के चार बच्चों में से सबसे छोटे थे, उनसे बडा एक भाई – कोमता मुंडा और दो बडी बहने डस्कीर और चंपा थीं। बिरसा मुंडा का परिवार आदिवासी समुदाय से था। चक्कड़ में बसने से पूर्व दूसरे स्थान पर चले गए, जहाँ उन्होंने अपना बचपन बिताया। छोटी उम्र से ही उनकी बासुंरी बजाने में रुचि थी। पारिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वे 2 वर्ष तक अपने मामा के घर अयूबतु में रहे। इसके बाद बिरसा की सबसे छोटी मौसी जौनी ने अपने साथ खटंगा लेकर गई। जौनी की शादी ग्राम खटंगा में हुई थी।
Education of Birsa Munda बिरसा मुंडा की शिक्षा
बिरसा मुंडा की प्रारंभिक शिक्षा सलगा में जयपाल नाग द्वारा संचालित एक स्कूल मे हुई। बिरसा मुंडा कुशाग्र छात्र थे, जिस कारण जयपाल नाग ने उन्हें जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ने के लिए राजी किया, जिस कारण उन्हें बिरसा डेविड के रूप में ईसाई धर्म अपनाना पडा। उन्होंने कुछ वर्ष पढाई पूरी होने तक इसी स्कूल में अध्ययन किया।
Birsa Munda struggle बिरसा मुंडा का संघर्ष
बिरसा मुंडा का परिवार 1886 से 1890 तक चाईबासा में रहता था, मुंडा का परिवार सरदार विरोधी गतिविधियों के प्रभाव में आया था। बिरसा मुंडा भी सरदार विरोधी गतिविधियों से प्रभावित थे और सरदार विरोधी आंदोलन में भाग लिया। बिरसा मुंडा के परिवार ने सरदार आंदोलन के समर्थन में 1890 में जर्मन मिशन से अपनी सदस्यता त्याग दी।
बाद में बिरसा मुंडा ने स्वयं को पोरहत क्षेत्र में संरक्षित जंगल में मुंडाओं के पारंपरिक अधिकारों पर अंग्रजों द्वारा लागू किए गए अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ लोकप्रिय आंदोलन में शामिल किया। 1890 के दशक की शुरुआत में मुंडा ने ब्रिटिश कंपनी की योजनाओं के बारे में आम लोगों में जागरूकता फैलाना शुरू किया।
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में, आदिवासी आंदोलनों में बढोत्तरी हुई और अंग्रेजों के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए गए। बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रूप में सामने आये।
अंततः बिरसा मुंड के निधन के बाद अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन समाप्त हो गये। किन्तु इनके द्वारा किये गये आंदोलनों का उल्लेखनीय रूप से महत्वपूर्ण स्थान था। ब्रिटिश सरकार कानूनों को लागू करने के लिए मजबूर हुई ताकि आदिवासी लोगों की भूमि को डिकस (बाहरी लोगों) द्वारा आसानी से दूर नहीं किया जा सके। बिरसा मुंडा ईश्वर के दूत के रूप में हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया और आदिवासी लोगों से सिफारिश की कि जो आदिवासी लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं, वे अपने मूल धर्म में लौट आयें।
Birsa Munda Death बिरसा मुंडा की मृत्यु
ब्रिटिश हुकूमत ने बिरसा मुंडा को अपने लिए खतरा मानते हुए 3 मार्च 1900 को बिरसा की आदिवासी छापामार सेना के साथ मकोपाई वन (चक्रधरपुर) में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। कैद के दौरान ही रांची जेल में 9 जून 1900 को 25 वर्ष की अल्पायु में उनकी मृत्यु हो गई। ब्रिटिश सरकार द्वारा बिरसा की मृत्यु हैजा बीमारी से होना बताया गया, लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखाया गया। दूसरी ओर यह भी माना जाता है कि जेल में बिरसा मुंडा को धीमा जहर दिया था। जिस कारण उनकी मृत्यु हुई।
Memorials स्मारक
बिरसा मुंडा एक महान क्रांतिकारी, आदिवासी महानायक और स्वतंत्रता सैनानी थे, जिनको सम्मानित करने के लिए, कई शिक्षण संस्थानों / कॉलेजों और स्थानों का नाम उनके नाम पर रखा गया है। जैसे कि ‘बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी – सिंदरी’, ‘बिरसा कृषि विश्वविद्यालय- रांची’, ‘बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम- रांची’ और ‘बिरसा मुंडा एयरपोर्ट- झारखण्ड’ आदि हैं।